Monday, April 9, 2018

*रोटी से विचित्र कुछ भी नहीं है... इंसान कमाने के लिए भी दौड़ता है... और पचाने के लिए भी दौड़ता है ....*
*"नहा कर गंगा में  सब पाप धो  आया ...*
*वहीं  से  धोये  पापों  का  पानी  भर  लाया ....*
 *वाह  रे इन्सान  तरीका  तेरा  समझ में  नहीं  आया..*.
*"पाप हमारी सोच से होता हैं,*
          *शरीर से नही*
                *और*
        *तीर्थों का जल,*
*हमारे शरीर को साफ करता हैं,*
       *हमारी सोच को नही।"*

        *☘सुप्रभात☘*

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